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परदे के पीछे

कुरसठ फाउंडेशन में हम अपने उद्देश्यों  को आगे बढ़ाने के लिए अपनी विशेषज्ञता और संसाधनों का निवेश करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 2017 से, हम विभिन्न तरीकों से अपने समुदाय के सदस्यों का समर्थन करते आ रहे हैं और अपनी सफलता को मौद्रिक आकार से नहीं, बल्कि हमारे प्रयासों के पैमाने और प्रभावशीलता जैसे अधिक गुणात्मक मापों द्वारा माप रहे हैं। जरा सोचिए कि हम एक साथ क्या नहीं हासिल कर सकते!

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हमारे गाँव के हर घर में शौचालय बने, यही मेरा सपना है!
- पुष्पा देवी, कहलैया, हरदोई।  

कुरसठ फाउंडेशन हरदोई के 8 गांव में कोविड बिहैवियर और सरकारी योजनाओं की जागरूकता के लिए कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में फाउंडेशन जिले के 8 गाँव (चुरई पुरवा, रोजिहाई, डाभा, कहलैया, खजोहना, सिंधवल और कोढ़वा हुसैनपुर) में यूनिसेफ़ की सहयोगी संस्था प्रैक्सिस के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं। फाउंडेशन के कार्यकर्ता गाँव की समस्याओं को समुदाय के साथ मिलकर सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें कोविड व्यवहार और टीकाकरण की जानकारी तथा उससे बचाव, शौचालय की उपलब्धता तथा स्वच्छता, सरकारी योजनाओं से समुदाय को जोड़ना, धात्री और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य और टीकाकरण पर अवेर्नेस तथा पेंशन की विभिन्न स्कीम और आयुष्मान कार्ड तथा श्रम कार्ड के लिए आवेदन आदि पर फाउंडेशन के सभी वालेंटियर्स जोकि महिलाएँ हैं और स्वंय भी वंचित समुदाय से संबंधित हैं, और जिन्होनें स्वयं बेहद ग़रीबी में रहकर पढ़ाई की है अपने अपने समुदाय में कार्य कर रही हैं।  अब तक फाउंडेशन ने लगभग 40 कार्यशालाएं इन चयनित स्थानों पर की हैं। संस्थान ने लगभग 800 परिवारों का सर्वे किया है और इसके आधार पर देखा गया है की किन परिवारों के पास शौचालय नहीं हैं उन्हें प्रधान और ब्लॉक के माध्यम से उपलब्ध करवाने का प्रयास किया जाएगा। सरकार की योजनाओं को गरीब और वंचित परिवारों को दिलवाने का कार्य भी फाउंडेशन द्वारा किया जा रहा है। समुदाय में शौचालय की उपयोगिता के प्रति जागरूक करना ही पुष्पा का मुख्य लक्ष्य है वे महिलाओं और किशोरियों की सुरक्षा से सबंधित पहलुओं पर आपसी समझ बढ़ाने का भी प्रयास कर रही हैं। जहां वे महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करती हैं वहीं पर शौचालय एक बड़ा मुद्दा सामने आता है। पुष्पा का कहना है की उनके गाँव में शौचालय की बड़ी समस्या दिखाई देती है जैसे कि गाँव में शौचालय की उपलब्धता न होने के कारण पुरुष और महिला दोनों को शौच के लिए बाहर जाना होता है। दूर-दूर तक जंगलों और खेतों में शौच के लिए जाना। दिन के समय बाहर शौच जाने पर लड़कियों और महिलाओं को शर्म महसूस होती है और रात में सुरक्षा का खतरा लगता है, ऐसा पुष्पा बताती हैं।

पुष्पा देवी, कहलैया, गाँव की हेमलेट वॉलेंटियर हैं, वे अपने गाँव में काफ़ी दिनों से सामाजिक कार्यों में जुड़ी हैं, वे एसएजजी से जुड़ी हैं और अपने गाँव में महिलाओं को बचत करने में सहयोग करती हैं। पुष्पा 7 वीं तक पढ़ी हैं लेकिन अपने बच्चों को ग्रेजुएशन तक पढ़ाने का संकल्प लेती हैं। अपने गाँव में सभी वंचित समुदायों की सहायता करना उनका अच्छा लगता है। सामाजिक कार्यों को करने के कारण ही उन्हें गाँव में पहचान मिली है।

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फाउंडेशन की कार्यशालाओं में चर्चा के दौरान निम्नलिखित मुद्दे और चुनौतियों की जानकारी मिलती है, “एक 17 वर्षीय  किशोरी ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि पुरुष और महिला और बच्चों सभी को बाहर शौच के लिए जाना पड़ता है। शर्म महसूस होने के कारण अक्सर किशोरियाँ सुबह जल्दी उठकर शौच के लिए जाती हैं। सबसे ज्यादा समस्या तब होती है जब उन्हें माहवारी आती है, पैड और कपड़ा बदलने के लिए भी खेतों में जाना पड़ता है। शौच के लिए दिन के समय बाहर जाने पर लड़के चिढ़ाते हैं या परेशान करते है और गंदे कमेन्ट करते हैं, जबकि हमें स्कूल में सिखाया जाता है कि बाहर शौच करने से बीमारी फैलती है परंतु पैसे न होने के कारण माता पिता शौचालय नहीं बना सकते फिर हम शौच करने कहा जाएँ? दिन के समय डर लगने के कारण हम तीन से चार सहेलियाँ मिलकर शौच के लिए जाती हैं” कार्यशालाओं में चर्चा के दौरान निम्नलिखित प्रस्तावित कार्रवाई के सुझाव आते हैं,  “आशा और एएनएम द्वारा महिलाओं और किशोरियों को सेनेटरी पैड मिलना चाहिए।, हर घर में शौचालय होने से कोई भी बाहर शौच के लिए नहीं जाएगा जिससे हमारा गाँव स्वच्छ रहेगा। वातावरण को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सकेगा। हर घर में शौचालय बनने से और उसके इस्तेमाल से बीमारियाँ को बढ़ने से रोका जा सकता है। पीरियड के समय ज्यादा परेशानी होने पर गाँव में एक छोटा स्वास्थ्य केंद्र होना चाहिए जिसमें एक महिला डॉक्टर होनी चाहिए। गर्भवती महिलाओं को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। स्कूल में किशोरियों को पैड हर महीने फ्री मिलना चाहिए। सरकारी अस्पताल भी गाँव के नजदीक होना चाहिए ताकि महिलाओं को कोई भी समस्या होने पर समाधान हो सकें। समय पर दवाई और इलाज मिलना चाहिए। घर-घर में शौचालय बने ताकि किशोरियों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो खासकर जब माहवारी हों। शौचालय ही सबसे बड़ी समस्या है।“

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